वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं, न ही यह संविधान में मौलिक अधिकार: केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में बयान

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नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में स्पष्ट किया कि वक्फ भले ही इस्लामी परंपरा से जुड़ा हो, लेकिन इसे इस्लाम का आवश्यक हिस्सा नहीं माना जा सकता। अतः इसे संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में नहीं देखा जा सकता। यह टिप्पणी केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान की।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वक्फ एक धार्मिक अवधारणा है, जिसे पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, लेकिन जब तक इसे इस्लाम की बुनियादी शिक्षा का अभिन्न हिस्सा साबित नहीं किया जाता, तब तक इस पर मौलिक अधिकारों का दावा नहीं किया जा सकता।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि किसी भी व्यक्ति को सरकारी भूमि पर मालिकाना हक नहीं मिल सकता, भले ही वह भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित की गई हो। मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि यदि कोई संपत्ति सरकारी घोषित हो चुकी है, तब सरकार के पास उसे अपने नियंत्रण में रखने का पूरा अधिकार है।

सुनवाई कर रही पीठ में चीफ जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे। यह याचिकाएं हाल ही में पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के खिलाफ दायर की गई थीं। यह अधिनियम अप्रैल में संसद से पारित हुआ था और 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद कानून बना। लोकसभा में यह विधेयक 288 मतों से पारित हुआ, जबकि इसके विरोध में 232 वोट पड़े। राज्यसभा में इसे 128 सदस्यों का समर्थन मिला और 95 ने विरोध में मतदान किया।