संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले-प्रजा की रक्षा करना राजा का धर्म, अत्याचारी को सबक सिखाना भी अहिंसा का ही एक रूप

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नई दिल्ली,पहलगाम आतंकी हमले के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि अहिंसा हमारा मूल धर्म है, लेकिन जब कोई अत्याचार पर उतर आए तो उसे सबक सिखाना भी धर्म का ही एक हिस्सा है। उन्होंने कहा कि राजा का प्रमुख कर्तव्य प्रजा की रक्षा करना है और उसे इसमें कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए। भागवत रविवार को दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के दौरान बोल रहे थे, जहां पहलगाम हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई।

अपने संबोधन में संघ प्रमुख ने कहा कि हमारा धर्म संतुलन का धर्म है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां अहिंसा को मूलस्वभाव बताया गया है, लेकिन जब कोई असहनीय अत्याचार करे, तब उसका प्रतिकार भी धर्मसम्मत है। भागवत ने कहा, “हम किसी के दुश्मन नहीं हैं, द्वेष हमारा स्वभाव नहीं है। रावण का वध भी उसके कल्याण के लिए किया गया था। संहार को हिंसा नहीं कहा जाता।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय परंपरा में अहिंसा और अत्याचार के विरोध दोनों के बीच संतुलन है, जबकि पाश्चात्य विचारधारा में यह संतुलन दिखाई नहीं देता। उन्होंने महाभारत का उदाहरण देते हुए कहा कि गीता में अहिंसा का संदेश है, लेकिन अर्जुन ने धर्म की रक्षा के लिए युद्ध किया।

सनातन धर्म के सही अर्थ को समझने की जरूरत

भागवत ने कहा कि सनातन धर्म को केवल कर्मकांडों और खानपान की आदतों तक सीमित कर देना धर्म की सही समझ नहीं है। धर्म सत्य, शुचिता, करुणा और तपस्या जैसे चार स्तंभों पर आधारित है। इन सिद्धांतों से परे कुछ भी अधर्म की श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा, “आज धर्म का अर्थ केवल पूजा विधि या खाने-पीने की चीजों तक सीमित कर दिया गया है, जबकि धर्म एक सार्वभौमिक सिद्धांत है।”

अस्पृश्यता का कहीं समर्थन नहीं

संघ प्रमुख ने कहा कि हिंदू धर्मग्रंथों में कहीं भी अस्पृश्यता का समर्थन नहीं किया गया है। “कोई काम छोटा या बड़ा नहीं है। जो ऊंच-नीच का भाव रखता है, वह अधर्म कर रहा है,” उन्होंने कहा। साथ ही उन्होंने इस बात पर बल दिया कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने चुने हुए धर्म का पालन करना चाहिए और दूसरों के मार्ग का सम्मान करना चाहिए।

भागवत ने यह भी कहा कि धर्म के ऊपर जो धर्म है, वह आध्यात्मिकता है। जब तक इस गहराई को नहीं समझा जाएगा, तब तक धर्म का सही अर्थ नहीं जाना जा सकता।

‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ का विमोचन

इस मौके पर स्वामी विज्ञानानंद ने अपनी पुस्तक ‘द हिंदू मेनिफेस्टो’ का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि यह पुस्तक प्राचीन भारतीय ज्ञान को समकालीन संदर्भों में पुनः व्याख्यायित करती है। विज्ञानानंद ने कहा कि हिंदू दर्शन हमेशा समय के साथ प्रासंगिक रहा है और इसका आधार सनातन ऋषियों के कालातीत सिद्धांतों में है।