एक मंदिर, एक कुआं, और एक श्मशान’ हिंदू समाज को लेकर मोहन भागवत का बड़ा बयान

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने शनिवार को अलीगढ़ प्रवास के दौरान दो प्रमुख शाखाओं—सनातन शाखा (HB इंटर कॉलेज परिसर) और पंचनगरी की भगत सिंह शाखा—में स्वयंसेवकों को संबोधित किया। उन्होंने समाज में समरसता, समानता और राष्ट्र निर्माण को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश दिया।

“एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान” का संदेश

मोहन भागवत ने समाज में व्याप्त ऊंच-नीच और भेदभाव की दीवारों को तोड़ने के लिए “एक मंदिर, एक कुआं और एक श्मशान” का सिद्धांत अपनाने की बात कही। उनका मानना है कि जब सभी वर्गों और जातियों को समान अधिकार और सम्मान मिलेगा, तभी वास्तविक सामाजिक समरसता स्थापित हो सकेगी।

पंच परिवर्तन का मंत्र

भागवत ने स्वयंसेवकों को पांच प्रमुख क्षेत्रों में परिवर्तन लाने का आह्वान किया, जिन्हें उन्होंने “पंच परिवर्तन” कहा। ये हैं:

1. कुटुंब प्रबोधन – परिवार को संस्कार और मूल्यों का केंद्र बनाना।

2. सामाजिक समरसता – जाति और वर्ग भेद मिटाकर एकजुट समाज की स्थापना।

3. पर्यावरण संरक्षण – प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता और संरक्षण की भावना।

4. स्व जागरण – आत्मबोध और व्यक्तिगत विकास को प्राथमिकता देना।

5. नागरिक कर्तव्य – अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों के प्रति जागरूकता।

सामाजिक अभियान और संवाद की अपील

RSS के शताब्दी वर्ष के अवसर पर भागवत ने समाज में व्यापक बदलाव के लिए एक सामाजिक अभियान की शुरुआत की। उन्होंने स्वयंसेवकों से अपील की कि वे सभी जातियों और वर्गों के लोगों से मिलें, उन्हें अपने घर बुलाएं, उनके त्योहारों में सहभागी बनें और समरसता सम्मेलन, ग्राम देवता पूजा, सामूहिक भोज व सद्भाव बैठकों जैसे आयोजनों के माध्यम से समाज में एकता और मेलजोल बढ़ाएं।

संस्कृति और नैतिक मूल्यों पर जोर

भागवत ने हिंदू समाज की नींव को मजबूत करने के लिए परंपराओं, सांस्कृतिक मूल्यों और नैतिक सिद्धांतों को जीवन में उतारने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि केवल ‘समरसता’ ही समाज में सकारात्मक परिवर्तन का मार्ग है और यही राष्ट्र निर्माण की सच्ची दिशा है।

इस प्रकार मोहन भागवत का यह संबोधन न केवल संघ के स्वयंसेवकों के लिए मार्गदर्शक रहा, बल्कि पूरे समाज के लिए एकता, समानता और समरसता की प्रेरणा भी बना।