रामगढ़ की अर्पणा देवी: कठिन हालात से आत्मनिर्भरता तक की मिसाल

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ग्रामीण महिलाओं के लिए बनीं बदलाव की प्रेरणा

रामगढ़, गोला प्रखंड: झारखंड के रामगढ़ जिले के नावाडीह (हारूबेड़ा) गांव की रहने वाली अर्पणा देवी आज अपने हौसले और मेहनत से न केवल अपने परिवार का सहारा बनी हैं, बल्कि गांव की अन्य महिलाओं के लिए भी उम्मीद की किरण साबित हो रही हैं। खेतों में मजदूरी से शुरू हुआ उनका संघर्ष आज उन्हें आत्मनिर्भरता की मिसाल बना चुका है।

एक समय था जब अर्पणा देवी के पास जीवन यापन का कोई निश्चित जरिया नहीं था। उनके पति दिव्यांग हैं, जिससे घर की पूरी जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई थी। बच्चों की पढ़ाई, घर का खर्च और पति की देखभाल जैसे कई मोर्चों को उन्होंने अकेले संभाला। कभी खेतों में मजदूरी, तो कभी इधर-उधर छोटे-मोटे काम कर किसी तरह घर चलता था। लेकिन उन्होंने हालात से हार मानने के बजाय रास्ता खोजा।

महिला समूह से बदली जिंदगी

साल 2016 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी (JSLPS) द्वारा गांव में “संयुक्त महिला समिति” नामक स्वयं सहायता समूह का गठन हुआ। अर्पणा देवी भी इसमें जुड़ीं और उन्हें पहली बार लगा कि अकेले संघर्ष करने की बजाय मिलकर आगे बढ़ना ज्यादा प्रभावी हो सकता है।

समूह में आर्थिक गतिविधियों और प्रशिक्षण के ज़रिए उन्हें न केवल जागरूकता मिली, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ा। सामूहिक बचत और बैठकों ने उन्हें योजना बनाना और संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करना सिखाया।

मशरूम से शुरू हुआ स्वरोजगार

2017 में अर्पणा देवी ने मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण प्राप्त किया और समूह की मदद से ₹10,000 का ऋण लेकर एक छोटी इकाई शुरू की। पहले यह कार्य नया था, लेकिन धैर्य और मेहनत से उन्होंने धीरे-धीरे इसमें निपुणता हासिल कर ली। आज वह हर साल 250-300 किलो तक मशरूम का उत्पादन करती हैं, जिसे बेचकर ₹45,000 से ₹60,000 तक की आय होती है।

पशुपालन और जैविक खाद से आय में बढ़ोतरी

मशरूम उत्पादन के बाद अर्पणा देवी ने दो गायें पालकर दुग्ध व्यवसाय शुरू किया। रोज़ाना 3-5 लीटर दूध की बिक्री से उन्हें हर महीने ₹4,000-₹5,000 की आमदनी होती है। इसके अलावा उन्होंने गोबर खाद और केंचुआ खाद बनाना भी शुरू किया है, जिससे उन्हें सालाना ₹10,000-₹15,000 की अतिरिक्त आय मिलती है।

इस तरह आज अर्पणा देवी की कुल सालाना आय ₹1.1 लाख से अधिक हो चुकी है। वे अब न केवल आर्थिक रूप से सक्षम हैं, बल्कि दूसरों को भी सशक्त बना रही हैं।

गांव की महिलाओं के लिए बनीं रोल मॉडल

आज अर्पणा देवी गांव में महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी हैं। वे अन्य महिलाओं को समूह से जोड़ने, वित्तीय साक्षरता सिखाने और स्वरोजगार के लिए प्रेरित करने में जुटी रहती हैं। वे बताती हैं, “संगठन, जानकारी और मेहनत – यही तीन चीजें हैं जो किसी भी महिला को आत्मनिर्भर बना सकती हैं।”

अर्पणा देवी की यह यात्रा बताती है कि संसाधनों की कमी, सामाजिक चुनौतियां और पारिवारिक जिम्मेदारियां अगर हिम्मत और संकल्प के सामने खड़ी हों, तो भी महिला बदलाव की मिसाल बन सकती है।

उनकी कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि पूरे ग्रामीण समाज को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाली एक प्रेरणात्मक कहानी है।