बिना ठोस जानकारी के किसी को ‘बांग्लादेशी’ बताकर न लौटाएं: राज्य सरकार ने केंद्र से की मांग

Spread the News

कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार ने केंद्र सरकार से स्पष्ट तौर पर कहा है कि किसी भी व्यक्ति को ‘बांग्लादेशी’ करार देकर सीमा पार भेजने से पहले उसकी पूरी जानकारी राज्य प्रशासन के साथ साझा की जाए। सरकार का मानना है कि बांग्ला बोलना किसी की नागरिकता का प्रमाण नहीं हो सकता और यह सुनिश्चित किया जाना आवश्यक है कि संबंधित व्यक्ति वास्तव में भारतीय नागरिक है या विदेशी।

सरकार ने केंद्र को भेजा संदेश

राज्य के गृह विभाग ने इस सिलसिले में केंद्र सरकार को पहले ही एक आधिकारिक संदेश भेजा है, जिसमें कहा गया है कि जब तक किसी व्यक्ति की पहचान और नागरिकता से जुड़ी जानकारी राज्य प्रशासन से जांच-पड़ताल कर नहीं ली जाती, तब तक उसे जबरन देश से बाहर भेजने की कार्रवाई न की जाए।

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जताई नाराजगी

इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी गहरी नाराजगी जताई है। नवान्न में आयोजित एक प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा, “क्या बांग्ला बोलना गुनाह है? यह हमारी मातृभाषा है और हर नागरिक को अपनी भाषा में बात करने का अधिकार है।” उन्होंने यह भी कहा कि सिर्फ भाषा के आधार पर किसी को विदेशी बताना पूरी तरह से निंदनीय और अस्वीकार्य है।

वैध दस्तावेज रखने वालों को भी बनाना पड़ा निशाना

राज्य सचिवालय के मुताबिक हाल के दिनों में कुछ बांग्ला भाषी लोगों को, जिनके पास आधार कार्ड और वोटर कार्ड जैसे सरकारी दस्तावेज मौजूद थे, विदेशी कहकर ‘पुशबैक’ करने की कोशिश की गई। विशेष तौर पर मुर्शिदाबाद, उत्तर 24 परगना और पूर्व बर्दवान जिलों से सामने आए मामलों ने सरकार की चिंता को और बढ़ा दिया है।

राज्य ने केंद्र के साथ समन्वय की जरूरत बताई

राज्य सरकार का कहना है कि प्रवासी मज़दूर देश के विभिन्न हिस्सों में काम करते हैं और अपनी मातृभाषा में बात करना स्वाभाविक है। इस आधार पर उनकी नागरिकता पर सवाल उठाना गलत है। हाल ही में मुख्यमंत्री के निर्देश पर राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत और केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन के बीच बैठक भी हुई, जिसमें इस मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हुई और सहमति बनी कि बिना राज्य की पुष्टि के किसी को बांग्लादेशी कहकर देश से बाहर न भेजा जाए।

बांग्ला भाषी भारतीयों को जबरन भेजना असंवैधानिक: राज्य सरकार

राज्य सरकार ने दोहराया है कि वह देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है और केंद्र को हरसंभव सहयोग देने को तैयार है। लेकिन वैध भारतीय नागरिकों को सिर्फ उनकी भाषा के आधार पर बांग्लादेश भेजना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह संविधान और मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए केंद्र और राज्य के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया है।