नई दिल्ली, भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान तुर्की और अज़रबैजान के खुले समर्थन ने भारतीय शैक्षणिक जगत में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया है। देश की कई नामी विश्वविद्यालयों ने दोनों देशों के शिक्षण संस्थानों से अपने करार (MoU) तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिए हैं।
सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (LPU) ने सहयोग समझौतों पर विराम लगाया। इनके बाद नोएडा-स्थित शारदा यूनिवर्सिटी और चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी ने भी तुर्की-अज़रबैजान की 23 से अधिक विश्वविद्यालयों के साथ चले आ रहे गठजोड़ समाप्त करने की घोषणा की। वहीं जामिया मिलिया इस्लामिया ने भी अपने विस्तृत मूल्यांकन के बाद तुर्की से सभी शैक्षणिक संबन्ध निरस्त कर दिए हैं।
शारदा यूनिवर्सिटी ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा, “राष्ट्रहित सर्वोपरि है। हमारी प्राथमिकता छात्रों की सुरक्षा और देश की भावनाओं का सम्मान करना है।” उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष सैकड़ों तुर्की छात्र शारदा कैंपस में अध्ययन हेतु आते रहे हैं और दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान में यह एक महत्वपूर्ण सेतु की भूमिका निभाता रहा है।
इसी बीच, कॉनफ़ेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने तुर्की और अज़रबैजान के साथ समस्त व्यापारिक संबंध समाप्त करने का आह्वान किया है। संगठन की हालिया बैठक में 125 से अधिक उद्योग जगत के प्रतिनिधियों ने तुर्की बहिष्कार के पक्ष में मत दिया।
परिप्रेक्ष्य में बताना आवश्यक है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारत द्वारा पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर की गई कार्रवाई की तुर्की ने सार्वजनिक रूप से निंदा की थी और बाद में पाकिस्तान को हथियार एवं ड्रोन सहयोग प्रदान किया। इस रुख ने भारत में व्यापक असंतोष को जन्म दिया तथा अब शैक्षणिक एवं व्यापारिक मोर्चों पर इसका स्पष्ट असर दिखाई दे रहा है।
विश्लेषकों का मत है कि यह कदम न केवल उच्च शिक्षा क्षेत्र बल्कि पर्यटन एवं कारोबार पर भी दूरगामी प्रभाव छोड़ सकता है। खासकर तब, जब तुर्की भारतीय पर्यटकों के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य रहा है। फिलहाल, भारत में ‘तुर्की-मुक्त’ आपूर्ति शृंखलाओं एवं विकल्पों पर विचार-विमर्श तेज हो गया है।