बीएसएफ के जवान पूर्णम शॉ, जिन्हें 23 अप्रैल को पंजाब के फिरोजपुर सेक्टर में गलती से सीमा पार करने के बाद पाकिस्तानी रेंजर्स ने पकड़ लिया था, आखिरकार भारत लौट आए हैं। मंगलवार को उन्हें वाघा-अटारी सीमा से भारत को सौंपा गया।
कैसे हुई चूक?
पूर्णम शॉ 182वीं बीएसएफ बटालियन के कॉन्स्टेबल हैं और घटना के समय बॉर्डर गेट संख्या 208/1 पर तैनात थे। वे खेतों में फसल की कटाई कर रहे भारतीय किसानों की सुरक्षा में जुटे थे। तेज गर्मी के चलते जब वे एक पेड़ की छांव में खड़े हुए, तो अनजाने में अंतरराष्ट्रीय सीमा की बाड़ को पार कर गए। वहीं, पाकिस्तानी रेंजर्स ने उन्हें तुरंत हिरासत में ले लिया और उनकी सर्विस राइफल भी जब्त कर ली गई।
पश्चिम बंगाल के रहने वाले हैं जवान
पूर्णम शॉ मूल रूप से पश्चिम बंगाल के रिशरा के निवासी हैं। उनकी पत्नी रजनी ने जवान की रिहाई को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात की थी और बीएसएफ अधिकारियों से संपर्क कर चंडीगढ़ भी पहुंची थीं।
पाकिस्तान कर रहा था रिहाई में देरी
घटना के बाद बीएसएफ ने कई बार फ्लैग मीटिंग का प्रस्ताव दिया, मगर पाकिस्तान की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली। जानबूझकर फ्लैग मीटिंग को नजरअंदाज किया गया। बाद में भारत ने डिप्लोमेटिक चैनल्स के जरिए दबाव बनाकर जवान की रिहाई सुनिश्चित कराई।
क्यों दिखा पाकिस्तान बैकफुट पर?
बीएसएफ के पूर्व अधिकारियों का मानना है कि सीमा की अनजानी चूक पर पहले भी दोनों देशों के बीच मामूली बातचीत में मामला सुलझाया जाता रहा है। लेकिन इस बार भारत की सख्त नीति, विशेषकर हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान की स्थिति कमजोर हुई। भारत की आक्रामक रणनीति और अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान को जवान को रिहा करने पर मजबूर होना पड़ा।
पूर्णम शॉ की सकुशल वापसी न केवल उनकी बहादुरी की मिसाल है, बल्कि यह भारत की मजबूत कूटनीति और सुरक्षा तंत्र की जीत भी है। यह घटना भारत की सीमाओं की रक्षा कर रहे हर जवान के समर्पण और देश की दृढ़ नीतियों का प्रतीक बन गई है।