उड़ीसा हाईकोर्ट का निर्णय: किसी विशेष दवा कंपनी की दवा लिखने मात्र से डॉक्टर को अपराधी नहीं ठहराया जा सकता

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डॉ. रवींद्र कुमार जेना, जो वर्ष 2013 से 2017 तक एससीबी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल, कटक में हेमेटोलॉजी विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख रहे, के खिलाफ राज्य सतर्कता विभाग ने 12 दिसंबर 2017 को एफआईआर दर्ज की थी।

एफआईआर में आरोप था कि डॉ. जेना ने विभिन्न दवा कंपनियों को अनुचित लाभ पहुँचाया और ओडिशा स्टेट ट्रीटमेंट फंड (OSTF) के नियमों का उल्लंघन किया। यह फंड राज्य सरकार द्वारा गरीब मरीजों को कैंसर, हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए स्थापित किया गया था।

आरोपों के अनुसार, डॉ. जेना ने मरीजों को सस्ती दवाओं के बजाय महंगी कीमोथेरेपी दवाएँ खरीदने के लिए बाध्य किया। इस कार्यवाही को चुनौती देते हुए डॉ. जेना ने वर्ष 2024 में उड़ीसा हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट का फैसला:

जस्टिस आदित्य कुमार मोहपात्रा की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई डॉक्टर किसी विशेष कंपनी की दवा मरीजों को लिखता है, तो मात्र इस आधार पर उसे अपराधी नहीं ठहराया जा सकता, खासकर तब जब दवा कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज से संबंधित हो।

हालांकि, यह सुरक्षा तभी लागू होगी जब दवा न तो खतरनाक हो, न घटिया गुणवत्ता की हो और न ही सरकार द्वारा प्रतिबंधित हो।

अदालत ने कहा कि यदि किसी दवा कंपनी को लाभ होता है, तो इसे सरकार को नुकसान पहुँचाना या भ्रष्टाचार के समान नहीं माना जा सकता।

जस्टिस मोहपात्रा ने यह भी टिप्पणी की कि यदि इस तरह की आपराधिक कार्यवाहियों को बढ़ावा दिया गया, तो डॉक्टर स्वतंत्रता और निर्भयता से मरीजों का सर्वोत्तम इलाज नहीं कर पाएंगे।

अंततः, हाईकोर्ट ने पाया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए उन मापदंडों के अंतर्गत आता है, जिनके अनुसार आपराधिक कार्यवाही रद्द की जा सकती है। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह की कार्यवाही को जारी रखना “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” होगा।

इसी आधार पर, विशेष जज (विजिलेंस), कटक के समक्ष डॉ. रवींद्र कुमार जेना के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया गया।