भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ सांसद निशिकांत दुबे ने शनिवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को लेकर एक बेहद विवादित बयान दिया है, जिसने राजनीतिक और न्यायिक गलियारों में हलचल मचा दी है। दुबे ने देश में हो रही सामाजिक और धार्मिक अशांति के लिए सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट और विशेष रूप से CJI को जिम्मेदार ठहराया है।
पत्रकारों से बातचीत में दुबे ने कहा कि आज देश में जो भी ‘गृह युद्ध जैसी स्थितियां’ पैदा हो रही हैं, उसके मूल में सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट बार-बार अपनी संवैधानिक मर्यादाओं को लांघ रहा है और यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरा है।
बीजेपी सांसद ने कोर्ट द्वारा लिए गए कुछ ऐतिहासिक फैसलों जैसे IPC की धारा 377 को रद्द करना और आईटी एक्ट की धारा 66ए को समाप्त करना भी कटघरे में खड़ा किया। उनका कहना था कि ये फैसले भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों के खिलाफ हैं। दुबे ने यह तर्क दिया कि धारा 66ए जैसे कानून बच्चों और महिलाओं को अश्लील ऑनलाइन सामग्री से बचाने के लिए जरूरी थे।
ज्ञानवापी, मथुरा और राम मंदिर से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के रुख पर भी उन्होंने तीखी टिप्पणी की। उनका आरोप था कि अदालतें ऐतिहासिक तथ्यों की पुष्टि के लिए दस्तावेज मांगती हैं, लेकिन कुछ मामलों में यह सख्ती नहीं दिखाई जाती, जिससे पक्षपात की आशंका पैदा होती है। दुबे ने कहा कि ऐसे निर्णय देश में धार्मिक तनाव को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं।
इसके अलावा उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 141 और 368 का हवाला देते हुए कहा कि कानून बनाने का अधिकार संसद को है, न कि अदालत को। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों को दिए गए निर्देशों को भी उन्होंने अनुचित हस्तक्षेप बताया। उनका कहना था कि अगर सर्वोच्च न्यायालय ही सारे फैसले लेगा, तो संसद की भूमिका शून्य हो जाएगी।
दुबे ने अंत में सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अब अदालतों का रवैया “चेहरा दिखाओ, कानून हम बना देंगे” जैसा हो गया है, जो न्याय की मूल भावना के विपरीत है।
उनके इस बयान के बाद सियासी और कानूनी हलकों में बहस तेज हो गई है, और इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर एक बड़ा हमला माना जा रहा है।