भारत में एक अहम और बहुप्रतीक्षित कानूनी परिवर्तन के तहत वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 अब यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट, इम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट (उम्मीद) अधिनियम, 1995 के रूप में कानून बन चुका है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को इस विधेयक को अपनी स्वीकृति देकर इसे औपचारिक रूप से लागू कर दिया। इसके साथ ही यह कानून पूरे देश में प्रभावी हो गया।
संसद से सड़कों तक बहस और विरोध
विधेयक की संसद में पारित होने की प्रक्रिया जितनी संवैधानिक थी, उतनी ही विवादास्पद भी। लोकसभा में 288 वोटों से समर्थन मिला, वहीं 232 सांसदों ने इसका विरोध किया। राज्यसभा में भी स्थिति कुछ वैसी ही रही—128 समर्थन में, 95 विरोध में। इसके बावजूद सरकार ने इसे पारित कराने में सफलता प्राप्त की।
विपक्षी दलों के साथ-साथ कई मुस्लिम संगठनों ने इस विधेयक के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन किए। विरोधियों का मानना है कि यह अधिनियम मुस्लिम धार्मिक स्वायत्तता और वक्फ की मूल भावना के खिलाफ है।
क्या है “उम्मीद” अधिनियम में?
सरकार का दावा है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए बनाया गया है। इसके प्रमुख प्रावधानों में शामिल हैं:
• वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम और महिला सदस्यों की नियुक्ति
• वक्फ संपत्तियों का डिजिटलीकरण
• कलेक्टर को सर्वेक्षण और निगरानी का अधिकार
• ट्रिब्यूनल के फैसलों के विरुद्ध हाई कोर्ट में अपील की सुविधा
गृह मंत्री अमित शाह और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने संसद में कहा कि इस अधिनियम से गरीब मुस्लिम महिलाओं, बच्चों और समुदाय के वंचित वर्गों को लाभ मिलेगा। गैर-मुस्लिमों की भागीदारी पर उठे सवालों के जवाब में उन्होंने स्पष्ट किया कि 11 सदस्यीय वक्फ बोर्ड में अधिकतम तीन सदस्य ही गैर-मुस्लिम होंगे, जिससे बहुमत मुस्लिम प्रतिनिधियों का ही रहेगा।
जेपीसी की भूमिका और विधेयक में बदलाव
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 को पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया था, जहां व्यापक समीक्षा के बाद इसकी सिफारिशों को शामिल किया गया। एक महत्वपूर्ण बदलाव यह किया गया कि यह अधिनियम पूर्व प्रभाव से लागू नहीं होगा, जिससे इसके लागू होने से पहले के मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
आगे की राह: कानून बनाम विवाद
जहां सरकार इसे वक्फ संपत्तियों की रक्षा और समुदाय के हितों के लिए उठाया गया एक कदम मानती है, वहीं विरोधी इसे धार्मिक स्वतंत्रता और अधिकारों पर अतिक्रमण के रूप में देख रहे हैं। अब जब यह कानून अस्तित्व में आ चुका है, इसकी सफलता या विफलता आने वाले समय में इसके कार्यान्वयन और न्यायिक समीक्षा पर निर्भर करेगी।