‘खामोशी को कमजोरी ना समझे मोदी सरकार…’  क्यों उमर अब्दुल्ला ने बुलाई आपात बैठक?

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जम्मू-कश्मीर की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व में शनिवार को गुपकार स्थित उपमुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास ‘फेयरव्यू’ में एक अहम और आपातकालीन बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के तमाम विधायक, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गठबंधन के सहयोगी दलों के प्रतिनिधि मौजूद रहे। बैठक का मकसद केंद्र सरकार के हालिया फैसलों पर कड़ा ऐतराज़ जताना और एकजुट विरोध का संदेश देना था।

वक्फ संशोधन विधेयक बना विरोध की वजह

बैठक का केंद्र बिंदु रहा संसद में पारित हुआ वक्फ संशोधन विधेयक, जिसे मुख्यमंत्री अब्दुल्ला की सरकार ने मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर सीधा हमला करार दिया। कांग्रेस विधायक और एनसी के मुख्य प्रवक्ता निजामुद्दीन भट्ट ने बैठक के बाद कहा,

“यह विधेयक सिर्फ कागज़ी बदलाव नहीं, बल्कि हमारी धार्मिक और सामाजिक संरचना पर सीधा प्रहार है। इसे हर हाल में रोका जाना चाहिए।”

जनादेश का अपमान सहन नहीं होगा

बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि जम्मू-कश्मीर की जनता ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेतृत्व वाली सरकार को चुना है, और उस जनादेश का अपमान किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

भट्ट ने दो टूक कहा, “हमारी चुप्पी को हमारी कमजोरी समझने की भूल न करें। यह आखिरी बार है जब हम अनुरोध कर रहे हैं अगली बार यह प्रतिक्रिया होगी।”

‘अवैध’ तबादलों पर गुस्सा

बैठक में हाल ही में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा किए गए 48 JKAS अधिकारियों के तबादलों का भी मुद्दा उठाया गया। मुख्यमंत्री अब्दुल्ला ने इन तबादलों को “अवैध” और “लोकतांत्रिक प्रक्रिया का उल्लंघन” बताया। उन्होंने कहा कि यह हस्तक्षेप निर्वाचित सरकार की सहमति के बिना हुआ है, जिससे राजभवन और सरकार के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है।

गठबंधन की एकजुटता

बैठक के दौरान यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हुआ कि गठबंधन के सभी विधायक और सहयोगी दल मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के साथ पूरी तरह एकजुट हैं। सभी ने मिलकर यह मांग की कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक स्थिति, धार्मिक भावनाओं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करे।

यह बैठक न सिर्फ एक प्रशासनिक प्रतिक्रिया थी, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी — कि जम्मू-कश्मीर की चुनी हुई सरकार अपने अधिकारों और जनता के जनादेश की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है। आने वाले दिनों में इस टकराव की दिशा क्या होगी, इस पर पूरे देश की निगाहें टिकी रहेंगी।