रांची, 3 सितंबर 2025 (संवाददाता): झारखंड में करमा पर्व की धूम मची है, जो प्रकृति, भाई-बहन के स्नेह और सामाजिक एकजुटता का प्रतीक है। रांची से लेकर राज्य के हर कोने में यह आदिवासी त्योहार जोश के साथ मनाया जा रहा है। केंद्रीय सरना समिति के आयोजनों में हजारों लोग पारंपरिक नृत्य, गीत और पूजा में शामिल हुए। राज्य सरकार ने इसे सांस्कृतिक धरोहर मानते हुए आज बैंक अवकाश घोषित किया, जिससे रांची में बैंक सेवाएं बंद रहीं।
प्रकृति के प्रति श्रद्धा
भादो शुक्ल एकादशी को मनाया जाने वाला करमा पर्व प्रकृति और परंपरा का अनोखा संगम है। करम वृक्ष (नौक्लिया पर्विफोलिया) को उर्वरता का प्रतीक माना जाता है। लोग इसकी डाल की पूजा कर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। ‘जावा’ प्रसाद, जो अनाज और मिट्टी से बनता है, इस पर्व का विशेष हिस्सा है। रांची के बनहौरा जतरा मैदान में पिछले दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने समां बांधा।
उत्सव की तैयारियां
महिलाएं और युवतियां पर्व से पहले अनाज इकट्ठा करती हैं। रात में करम डाली की स्थापना के साथ ढोल-मांदर पर नृत्य होता है। पारंपरिक परिधानों में सजी महिलाएं और पुरुष करमा गीत गाते हैं, जो भाई-बहन के प्रेम और प्रकृति की महत्ता को दर्शाते हैं। सिमडेगा, जामशेदपुर जैसे जिलों में भी उत्साह है।
कथा और प्रेम का बंधन
करमा-धरमा की कथा इस पर्व का आधार है, जो सुख-शांति की सीख देती है। बहनें भाइयों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने रांची में आयोजनों में शिरकत की।
पर्यावरण और एकता का संदेश
करमा पर्व पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देता है। यह अब शहरी क्षेत्रों में भी लोकप्रिय है।