नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया है कि किसी सैन्य अभियान में भाग लेना व्यक्ति को कानून से ऊपर नहीं बना देता। अदालत ने दहेज हत्या के एक मामले में दोषी करार दिए गए आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि “ऑपरेशन सिंदूर” में भागीदारी होने के बावजूद आरोपी को अपने अपराध की जिम्मेदारी से नहीं बचाया जा सकता।
दरअसल, आरोपी बलजिंदर सिंह, जो कि स्वयं को ‘ब्लैक कैट कमांडो’ और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का हिस्सा बताता है, ने अदालत से अनुरोध किया था कि उसे पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने की अनुमति दी जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसकी इस मांग को सख्ती से खारिज करते हुए तीखी टिप्पणी की। अदालत ने कहा कि किसी भी राष्ट्रीय या सैन्य अभियान में भागीदारी इस बात का लाइसेंस नहीं हो सकती कि कोई अपने घर में पत्नी पर अत्याचार करे या उसकी हत्या कर दे।
न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को भी बरकरार रखा, जिसमें आरोपी को दोषी ठहराया गया था। अदालत ने यह भी दोहराया कि बलजिंदर सिंह के खिलाफ आईपीसी की धारा 304बी (दहेज के लिए हत्या) के तहत गंभीर आरोप सिद्ध हो चुके हैं, ऐसे में उसे राहत देने का कोई औचित्य नहीं है।
यह मामला एक बार फिर यह दर्शाता है कि न्यायपालिका देश की सुरक्षा में योगदान देने वालों का सम्मान तो करती है, लेकिन कानून के दायरे में सभी समान हैं, चाहे वह सैनिक हो या नागरिक।