नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी संपत्ति के क्रय-विक्रय से जुड़ा अनुबंध अगर निष्पादन की तारीख से चार माह के भीतर पंजीकृत नहीं कराया गया हो, तो उसे वैध नहीं माना जा सकता। यह निर्णय संपत्ति लेन-देन से जुड़े सभी पक्षों के लिए चेतावनी स्वरूप है, क्योंकि कई बार अनुबंध पर दस्तखत तो हो जाते हैं, लेकिन उसका समय पर पंजीकरण नहीं होता जिससे भविष्य में स्वामित्व को लेकर विवाद खड़े हो सकते हैं।
यह फैसला महनूर फातिमा इमरान बनाम विश्वेश्वर इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड केस में आया है, जिसमें वर्षों पुराने एक संपत्ति अनुबंध की वैधता को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 की धारा 23 के अनुसार, किसी भी विक्रय विलेख का पंजीकरण चार महीने के भीतर अनिवार्य है। यदि ऐसा नहीं होता, तो वह कानूनी रूप से मान्य नहीं रहेगा।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने धारा 34 का उल्लेख करते हुए कहा कि इसमें कुछ सीमित परिस्थितियों में चार महीने की अतिरिक्त मोहलत दी जा सकती है, लेकिन इसके लिए विलंब का उचित कारण प्रस्तुत करना होगा और जुर्माना भी चुकाना पड़ेगा।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 1982 में हुआ जिस अनुबंध की वैधता पर सवाल उठा था, वह न तो समय पर पंजीकृत हुआ और न ही कानून में तय समय-सीमा का पालन किया गया। बाद में उसे प्रमाणित कराने की कोशिश की गई, लेकिन अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया से अनुबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता।
न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि केवल दस्तावेज का रजिस्ट्रेशन करवा लेना पर्याप्त नहीं है, यह रजिस्ट्रेशन निर्धारित समय के भीतर होना चाहिए। देरी से किया गया पंजीकरण संपत्ति के वैध हस्तांतरण का आधार नहीं बनता।
सारांश में, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि बिक्री अनुबंध बिना समयबद्ध पंजीकरण के सिर्फ एक समझौता होता है, जिससे स्वामित्व का अधिकार नहीं मिलता। इसलिए संपत्ति से जुड़े सभी पक्षों को सतर्क रहना चाहिए और कानूनी समय-सीमा के भीतर दस्तावेजों का पंजीकरण अवश्य करवाना चाहिए।