बेंगलुरु। कर्नाटक सरकार ने राज्य में एक नया सामाजिक-आर्थिक जाति सर्वेक्षण कराने का निर्णय लिया है। यह फैसला शुक्रवार को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में लिया गया। सर्वेक्षण की जिम्मेदारी कर्नाटक राज्य स्थायी पिछड़ा वर्ग आयोग को दी गई है और इसे 90 दिनों के भीतर पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने बताया कि यह सर्वेक्षण कांग्रेस पार्टी के चुनावी वादों के अनुरूप सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने कहा कि पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम के अनुसार, किसी भी सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण की वैधता अधिकतम 10 वर्षों तक मानी जाती है। इसलिए पुराने आंकड़ों के स्थान पर नए सिरे से सर्वेक्षण आवश्यक हो गया था।
केंद्र सरकार की जातिगत जनगणना से इस प्रक्रिया को अलग बताते हुए मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि केंद्र ने किसी जाति आधारित सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण की घोषणा नहीं की है। इसके उलट, कर्नाटक सरकार स्वयं यह पहल कर रही है।
सूत्रों के अनुसार, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री से राज्य में फिर से जातिगत गणना कराने का सुझाव दिया था। राज्य के कई प्रमुख समुदायों ने भी पुराने सर्वेक्षण में त्रुटियों की शिकायत की थी।
पूर्व महाधिवक्ता मधुसूदन नाइक के नेतृत्व वाले आयोग को यह कार्य सौंपा जाएगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि तेलंगाना जैसे राज्यों ने भी इस तरह की प्रक्रिया को 70 दिनों में पूरा कर लिया था, ऐसे में कर्नाटक में 90 दिन का लक्ष्य व्यावहारिक है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि पूर्व में हुए सर्वेक्षण से संबंधित कई शिकायतें मिली थीं, जिसे ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है। सरकार की मंशा स्पष्ट है-सभी समुदायों को उनका हक और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कराना।