नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा जनसंख्या रिपोर्ट ने भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य को लेकर कई महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2025 के अंत तक भारत की जनसंख्या 1.46 अरब तक पहुंचने की संभावना है, जिससे वह विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बना रहेगा। हालांकि, इसके साथ ही यह भी खुलासा हुआ है कि देश की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR) अब प्रतिस्थापन स्तर 2.1 से नीचे गिरकर 1.9 पर आ चुकी है।
भारत में जनसंख्या वृद्धि की रफ्तार कम, युवाओं की संख्या अब भी अहम
रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि जनसंख्या में वृद्धि की रफ्तार भले ही धीमी हुई हो, पर भारत में युवाओं की संख्या अभी भी बड़ी है। आंकड़ों के अनुसार, देश की 24% आबादी 0 से 14 वर्ष की आयु वर्ग में है, जबकि 10 से 24 वर्ष के युवाओं की हिस्सेदारी 26% है। वहीं, कार्यशील आबादी (15-64 आयु वर्ग) का प्रतिशत 68 है, जो भविष्य में आर्थिक वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन साबित हो सकता है।
औसतन दो से भी कम बच्चे: प्रजनन दर में गिरावट गंभीर संकेत
यूएनएफपीए (UNFPA) द्वारा जारी “वर्ल्ड पॉपुलेशन स्टेटस 2025” रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय महिलाएं अब औसतन दो से भी कम बच्चे पैदा कर रही हैं। यह एक बड़ा सामाजिक और आर्थिक बदलाव है, जो दर्शाता है कि महिलाएं अब परिवार नियोजन के फैसलों में अधिक सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि आज भी लाखों लोग अपनी इच्छित संतान संख्या तक नहीं पहुंच पा रहे हैं।
महिलाओं की प्रजनन स्वतंत्रता में अब भी बाधाएं
रिपोर्ट के अनुसार, कई महिलाएं अब भी पूरी तरह स्वतंत्र रूप से यह निर्णय नहीं ले पातीं कि वे कब और कितने बच्चे चाहती हैं। वर्ष 1960 की तुलना में जब एक महिला औसतन छह बच्चों को जन्म देती थी, अब स्थिति काफी बदली है। तब अधिकांश महिलाएं गर्भनिरोधक साधनों से वंचित थीं और प्राथमिक शिक्षा से भी दूर थीं। आज की महिला अधिक शिक्षित और जागरूक है, लेकिन उसे अभी भी पूर्ण निर्णय लेने की आज़ादी और संसाधन नहीं मिल पा रहे हैं।
प्रजनन दर में गिरावट, जीवन प्रत्याशा में वृद्धि
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में जीवन प्रत्याशा में सुधार हो रहा है। वर्ष 2025 तक पुरुषों की औसत आयु 71 वर्ष और महिलाओं की 74 वर्ष तक पहुंचने का अनुमान है। वहीं बुजुर्ग आबादी (65 वर्ष से ऊपर) में भी वृद्धि दर्ज की जा रही है, जो आने वाले दशकों में और बढ़ेगी।
मातृ मृत्यु दर में भारी गिरावट, लेकिन असमानता बरकरार
यूएनएफपीए की भारत में प्रतिनिधि एंड्रिया एम वोज्नर ने कहा कि भारत ने प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा में सुधार के कारण प्रजनन दर में गिरावट लाकर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। इसके कारण मातृ मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय कमी आई है। लेकिन रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि सामाजिक, आर्थिक और क्षेत्रीय असमानताएं अब भी गहरी हैं।
अधिकार आधारित दृष्टिकोण की जरूरत
रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि केवल जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को सूचित और स्वतंत्र रूप से प्रजनन संबंधी निर्णय लेने का अधिकार मिलना चाहिए। भारत के पास यह मौका है कि वह दिखा सके कि कैसे प्रजनन अधिकारों को सुनिश्चित करके आर्थिक प्रगति को हासिल किया जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र की यह रिपोर्ट भारत के लिए एक चेतावनी के साथ-साथ अवसर का संदेश भी देती है। जहां प्रजनन दर में गिरावट सामाजिक बदलावों का संकेत है, वहीं यह नीति निर्माताओं के लिए एक स्पष्ट संकेत है कि जनसंख्या नीति अब केवल नियंत्रण नहीं, बल्कि समावेशी और अधिकार-आधारित होनी चाहिए।