नई दिल्ली। एलन मस्क की कंपनी SpaceX की सैटेलाइट आधारित इंटरनेट सेवा Starlink भारत में शुरुआत के बेहद करीब पहुंच चुकी है। केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने हाल ही में जानकारी दी कि कंपनी ने सभी नियामकीय शर्तें पूरी कर ली हैं और अब लाइसेंस प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
स्टारलिंक का उद्देश्य देश के दूरदराज और ग्रामीण इलाकों तक हाई-स्पीड इंटरनेट पहुंचाना है, जहां पारंपरिक टेलीकॉम सेवाएं सीमित या उपलब्ध नहीं हैं।
ग्रामीण भारत में डिजिटल क्रांति की तैयारी
टेलीकॉम सेक्टर के जानकारों का मानना है कि स्टारलिंक की यह पहल टेलीमेडिसिन, ई-लर्निंग, और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में नई संभावनाएं खोलेगी। कंपनी ने देश की दो दिग्गज दूरसंचार कंपनियों – रिलायंस जियो और भारती एयरटेल – के साथ रणनीतिक साझेदारी भी की है। गौरतलब है कि ये दोनों कंपनियां भारत के टेलीकॉम बाजार का लगभग 70% हिस्सा नियंत्रित करती हैं, जिससे स्टारलिंक को बाजार में स्थापित होने में सहायता मिलेगी।
कीमत और सेवा से जुड़ी प्रमुख बातें
स्टारलिंक की सेवा की शुरुआती कीमत ₹840 प्रतिमाह रखी गई है। हालांकि, सेवा की प्रकृति और उपयोगकर्ता के स्थान के आधार पर इसकी कीमत ₹7,000 प्रतिमाह तक जा सकती है। इस सेवा के लिए ग्राहकों को एक विशेष स्टारलिंक किट खरीदनी होगी, जिसमें सैटेलाइट डिश और वाई-फाई राउटर शामिल हैं। इस किट की कीमत ₹20,000 से लेकर ₹35,000 के बीच हो सकती है।
कंपनी का दावा है कि इसकी इंटरनेट स्पीड 50 से 150 Mbps के बीच होगी, जो खासकर उन इलाकों के लिए फायदेमंद होगी, जहां फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क की पहुंच नहीं है। अब तक कंपनी को देशभर से 5,000 से अधिक प्री-ऑर्डर मिल चुके हैं, जो इस सेवा के प्रति उपभोक्ताओं की रुचि को दर्शाता है।
लाइसेंस के बाद भी कई चुनौतियां
हालांकि, लाइसेंस मिलने के बाद भी स्टारलिंक को भारत में कई नियामकीय और तकनीकी बाधाओं से जूझना पड़ सकता है। सबसे बड़ी अड़चन स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर है। इसके लिए कंपनी को दूरसंचार विभाग (DoT) और ट्राई (TRAI) से समन्वय करना होगा। मंत्री सिंधिया ने संकेत दिया है कि स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण पर जल्द निर्णय लिया जाएगा।
इसके अलावा, सरकार ने डेटा सुरक्षा और साइबर कानूनों के तहत स्टारलिंक को डेटा लोकलाइजेशन के नियमों का पालन करने के निर्देश दिए हैं। क्योंकि सैटेलाइट के जरिए डाटा सीधे ट्रांसमिट होता है, इससे सुरक्षा एजेंसियों को कुछ चिंताएं हैं।
स्टारलिंक को IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र) के साथ भी सहयोग करना होगा, ताकि उसके सैटेलाइट ऑपरेशन ISRO के मिशनों से किसी प्रकार का टकराव न करें।
अगर स्टारलिंक को अंतिम मंजूरी मिलती है, तो यह भारत के डिजिटल भविष्य में एक नया अध्याय जोड़ सकती है। विशेषकर उन इलाकों के लिए, जो अब तक इंटरनेट की मुख्यधारा से कटे हुए हैं, यह सेवा एक वरदान साबित हो सकती है। अब सबकी निगाहें सरकार की ओर टिकी हैं कि कब यह सेवा हरी झंडी पाती है।