झारखंड बंद: सिरमटोली रैंप विवाद पर आदिवासी संगठनों का विरोध तेज, जेएलकेएम ने दिया समर्थन

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रांची, 4 जून: राजधानी रांची में सिरमटोली सरना स्थल के सामने बनाए जा रहे फ्लाईओवर रैंप के विरोध में मंगलवार को आदिवासी संगठनों ने जोरदार प्रदर्शन करते हुए आज झारखंड बंद का ऐलान किया है। बंद का आयोजन आदिवासी बचाओ मोर्चा और केंद्रीय सरना स्थल सिरमटोली बचाओ मोर्चा के संयुक्त तत्वावधान में किया गया है। बंद सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक रहेगा।

बंद से पहले मंगलवार शाम को राजधानी में मशाल जुलूस निकाला गया, जिसमें सैकड़ों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग शामिल हुए। जयपाल सिंह स्टेडियम से शुरू हुआ यह जुलूस अल्बर्ट एक्का चौक तक नारेबाज़ी करते हुए पहुंचा। प्रदर्शनकारियों ने स्पष्ट किया कि जब तक सिरमटोली सरना स्थल के सामने से रैंप को शिफ्ट नहीं किया जाता, विरोध जारी रहेगा।

आवश्यक सेवाओं को छूट

आंदोलनकारी संगठनों ने बंद के दौरान आमजन को राहत देते हुए दवा दुकानों, आवश्यक सेवाओं, एंबुलेंस, शव यात्रा और अस्पताल जाने वाले मरीजों को बंद से छूट दी है।

जेएलकेएम ने दिया समर्थन

झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (JLKM) ने भी बंद को समर्थन देने की घोषणा की है। पार्टी के केंद्रीय वरीय उपाध्यक्ष देवेंद्र नाथ महतो ने ऑक्सीजन पार्क में प्रेस से बात करते हुए कहा कि, “पार्टी आदिवासी संगठनों के इस आंदोलन को नैतिक समर्थन देती है और झारखंड सरकार से सभी मांगों को पूरा करने की अपील करती है।”

रैंप विवाद से लेकर आदिवासी अस्तित्व तक

संगठनों ने यह भी स्पष्ट किया है कि रांची का सिरमटोली रैंप केवल एक प्रतीक है, असल मुद्दा आदिवासी अस्मिता, आस्था और अधिकारों का है। बंद के माध्यम से मारंग बुरू, पारसनाथ पहाड़ (गिरिडीह), लुगूबुरू, मुड़हर पहाड़ और दिवरी दिरी जैसे धार्मिक स्थलों के संरक्षण की भी मांग की जाएगी।

साथ ही, आदिवासी संगठनों ने ऐलान किया है कि वे पेसा कानून के क्रियान्वयन, भूमि अधिग्रहण विरोध, धार्मिक न्यास बोर्ड के गठन, नियोजन नीति में संशोधन, लैंड बैंक की समाप्ति, ट्राइबल यूनिवर्सिटी की स्थापना, भाषा-संस्कृति संरक्षण और शराबबंदी जैसे मुद्दों पर भी सरकार का ध्यान आकर्षित करेंगे।

सरकार की अग्निपरीक्षा

सिरमटोली रैंप विवाद ने झारखंड सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। जहां एक ओर राज्य विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयासरत है, वहीं दूसरी ओर आदिवासी समाज अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए सड़क पर उतर आया है। आने वाले दिनों में सरकार को संतुलन साधने की परीक्षा से गुजरना होगा।