झारखंड के 1700 पारा शिक्षकों की नौकरी पर संकट, फर्जी डिग्री का मामला उजागर- बाबूलाल मरांडी ने सरकार को घेरा

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रांची: झारखंड में तकरीबन 1700 पारा शिक्षकों की नौकरी खतरे में पड़ गई है। शिक्षा विभाग की जांच में सामने आया है कि इन शिक्षकों ने ऐसे संस्थानों से शैक्षणिक डिग्रियां प्राप्त की हैं, जो कि न तो मान्यता प्राप्त हैं और न ही झारखंड में वैध माने जाते हैं। बताया जा रहा है कि ये संस्थान उत्तर प्रदेश स्थित हैं, जिनकी डिग्रियां राज्य में अमान्य हैं। इस गंभीर खुलासे के बाद झारखंड शिक्षा परियोजना परिषद (JEPC) ने संबंधित जिला शिक्षा अधीक्षकों को निर्देश जारी करते हुए इन शिक्षकों को सेवा से हटाने की प्रक्रिया शुरू करने को कहा है।

फर्जी डिग्री पर नौकरी, अब होगी कार्रवाई

JEPC के निदेशक शशि रंजन ने स्पष्ट किया कि नियमों के तहत मान्यता प्राप्त संस्थानों की ही डिग्रियों को स्वीकार किया जा सकता है। जिन शिक्षकों की डिग्रियां जांच में फर्जी पाई गई हैं, उनके खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। कुछ जिलों में शिक्षकों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जबकि अन्य जिलों से अंतिम रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है।

बाबूलाल मरांडी ने जताई नाराजगी

इस पूरे घटनाक्रम पर भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए लिखा कि 15-20 वर्षों से सेवा दे रहे शिक्षकों को इस प्रकार हटाना दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने कहा कि ये शिक्षक दूरदराज के इलाकों में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं, और इस कार्रवाई से न केवल उनका भविष्य अंधकारमय होगा बल्कि ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था भी चरमरा जाएगी।

मुख्यमंत्री को सुझाव

मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से अपील की कि शिक्षकों के अनुभव और वर्षों की सेवा को ध्यान में रखते हुए कोई वैकल्पिक समाधान निकाला जाए। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार चाहे तो विशेष मूल्यांकन प्रक्रिया के माध्यम से इन शिक्षकों की योग्यताओं की दोबारा जांच कर सकती है, ताकि योग्य और समर्पित शिक्षकों की सेवाएं बनी रहें और शिक्षा व्यवस्था पर विपरीत असर न पड़े।

फर्जी डिग्रियों पर नौकरी हासिल करने का यह मामला न केवल राज्य की शिक्षा प्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि इससे हजारों परिवारों का भविष्य भी दांव पर लग गया है। अब यह देखना अहम होगा कि सरकार इस पर कितनी सख्ती बरतती है और क्या कोई समाधानात्मक रास्ता भी अपनाया जाता है।