नई दिल्ली। तुर्की और पाकिस्तान के बीच दिनोंदिन मजबूत होती दोस्ती अब भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है। हाल ही में सामने आई एक नई साजिश ने भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल खड़ा कर दिया है। तुर्की समर्थित एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) ने ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ नामक विवादास्पद नक्शा जारी किया है, जिसमें भारत के कई राज्यों को बांग्लादेश का हिस्सा दिखाया गया है। यह नक्शा ढाका विश्वविद्यालय के एक हॉल में प्रदर्शित किया गया, जिसे छात्रों ने खुलेआम देखा।
कई भारतीय राज्य नक्शे में शामिल
मीडिया रिपोर्ट्स, विशेषकर द इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, इस नक्शे में बिहार, झारखंड, ओडिशा, असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम सहित म्यांमार का अराकान राज्य भी ‘सल्तनत-ए-बांग्ला’ के अंतर्गत दर्शाया गया है। इस नामकरण से स्पष्ट संकेत मिलता है कि यह एक इस्लामी सल्तनत की परिकल्पना है, जिसे भारत की संप्रभुता के खिलाफ गंभीर चुनौती माना जा रहा है।
मोहम्मद यूनुस के बयान से जुड़ा विवाद
यह नक्शा बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के उस विवादित बयान के बाद सामने आया है, जिसमें उन्होंने भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों को बांग्लादेश में मिलाने की बात कही थी। अप्रैल 2025 में ढाका यूनिवर्सिटी की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी, जिसमें एक व्यक्ति यह नक्शा पकड़े हुए दिखाई दिया था। तब से यह मुद्दा भारतीय राजनीति और सुरक्षा विशेषज्ञों के बीच गहन बहस का कारण बना हुआ है।
तुर्की का बढ़ता प्रभाव और भारत के लिए चेतावनी
विशेषज्ञों का मानना है कि तुर्की पाकिस्तान के साथ-साथ अब बांग्लादेश में भी अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। वह न केवल वहां के NGOs को समर्थन दे रहा है, बल्कि बांग्लादेशी सेना को हथियार भी मुहैया करा रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान तुर्की ने पाकिस्तान को ड्रोन जैसे उन्नत हथियार दिए, जिनका उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों में किया गया।
भारत सरकार ने तुर्की की इन हरकतों पर सख्त रुख अपनाया है, लेकिन इस तरह के विवादित नक्शों को एक बड़ी रणनीतिक साजिश माना जा रहा है, जिसका उद्देश्य भारत में क्षेत्रीय अस्थिरता पैदा करना है। सुरक्षा विशेषज्ञों ने सरकार से इस विषय पर कड़ा जवाब देने की मांग की है।
तुर्की समर्थित यह कथित ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ परियोजना न केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर सीधा हमला है, बल्कि यह दक्षिण एशिया में एक नए तरह के भूराजनैतिक तनाव की आहट भी है। अब देखना यह होगा कि भारत इस चुनौती का सामना किस रणनीति से करता है।