सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: घर में सीसीटीवी कैमरे लगाने के लिए सभी सदस्यों की सहमति जरूरी

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देश में प्राइवेसी यानी निजता के अधिकार को लेकर एक बड़ा फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है, जो घरों में सीसीटीवी कैमरे लगाने से संबंधित है। यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संबंधों के लिए भी दिशा देने वाला है।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला पश्चिम बंगाल के दो भाइयों के बीच चल रहे विवाद से जुड़ा था, जिसमें एक भाई ने घर में सीसीटीवी कैमरे लगाए थे, जबकि दूसरे ने इसका विरोध किया। यह मामला पहले कलकत्ता हाईकोर्ट पहुंचा था, जहां हाईकोर्ट ने कहा था कि बिना अनुमति के किसी के निजी क्षेत्र में निगरानी करना निजता के अधिकार का उल्लंघन है। इसी निर्णय की समीक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी यही रुख अपनाया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि घर के भीतर या बाहर सीसीटीवी कैमरे लगाने से पहले घर में रहने वाले सभी लोगों की स्पष्ट सहमति (informed consent) लेना अनिवार्य है। अदालत ने कहा कि:

1. निजता का अधिकार (Right to Privacy) संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।

2. बिना सहमति के निगरानी करना या रिकॉर्डिंग करना इस अधिकार का उल्लंघन है।

3. परिवार या संयुक्त घरों में यह जरूरी है कि सभी सदस्यों को सीसीटीवी की आवश्यकता, स्थान और उपयोग को लेकर जानकारी दी जाए और उनकी सहमति प्राप्त की जाए।

फैसले के प्रभाव:

• यह फैसला उन परिवारों और संयुक्त घरों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण होगा जहां आपसी भरोसे की कमी या संपत्ति विवाद चलते रहते हैं।

• अब कोई भी व्यक्ति अपनी मर्जी से घर के किसी हिस्से में कैमरे नहीं लगा सकेगा, खासकर तब जब वहां अन्य सदस्य भी रहते हों।

• यह निर्णय निजता की रक्षा को सुदृढ़ करता है और यह सुनिश्चित करता है कि तकनीक का इस्तेमाल मानवाधिकारों का हनन करने के लिए न हो।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक संवेदनशील और दूरदर्शी निर्णय है, जो यह बताता है कि आज के डिजिटल युग में भी नागरिकों की निजता सर्वोपरि है। यह फैसला न केवल कानूनी रूप से, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है और लोगों को यह समझाने का कार्य करता है कि पारिवारिक रिश्तों में भी सहमति और सम्मान अनिवार्य है।