भारत की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस ने हालिया ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर अत्यधिक सटीक और विध्वंसक हमले कर वैश्विक मंच पर अपनी धमक दर्ज कराई है। पाकिस्तान की वायु सुरक्षा प्रणाली को चकमा देते हुए, ब्रह्मोस ने नूर खान एयरबेस समेत कई रणनीतिक स्थलों को नष्ट कर दिया, जिससे पाकिस्तान को महज 86 घंटों में घुटने टेकने पड़े।
इस अभियान के बाद, ब्रह्मोस मिसाइल की गति, सटीकता और फायर एंड फॉरगेट क्षमता ने दुनियाभर के रक्षा विशेषज्ञों और देशों का ध्यान आकर्षित किया है। फिलीपींस, इंडोनेशिया, और वियतनाम जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ-साथ कुल 17 देशों ने इस मिसाइल को हासिल करने में गहरी रुचि दिखाई है।
फिलीपींस ने पहले ही लगभग 4000 करोड़ रुपये के समझौते के तहत ब्रह्मोस की पहली खेप प्राप्त कर ली है, जिसे दक्षिण चीन सागर में चीन की आक्रामक नीति के खिलाफ तैनात किया जाएगा। वर्ष 2022 में हुए पहले सौदे के तहत प्राप्त तीन बैटरियों के बाद, फिलीपींस ने अप्रैल 2025 में ब्रह्मोस की दूसरी खेप भी प्राप्त कर ली है।
इस बीच इंडोनेशिया और वियतनाम भी क्रमशः 450 मिलियन डॉलर और 700 मिलियन डॉलर के संभावित रक्षा सौदों की दिशा में बढ़ रहे हैं। ये देश ब्रह्मोस को न केवल सामरिक रक्षा प्रणाली के रूप में देख रहे हैं, बल्कि इसे चीन के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ एक रणनीतिक संतुलनकारी हथियार मान रहे हैं।
ब्रह्मोस की लोकप्रियता के पीछे इसकी अनूठी खूबियाँ हैं:
• मैक 2.8 से 3.0 तक की सुपरसोनिक गति, जो इसे दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल बनाती है।
• इसकी रेंज को 290 किमी से बढ़ाकर 450-800 किमी कर दिया गया है, जिसे भविष्य में 1500 किमी तक ले जाने की योजना है।
• यह मिसाइल जमीन, समुद्र, पनडुब्बी, और Su-30MKI जैसे लड़ाकू विमानों से दागी जा सकती है
• रडार चकमा देने की क्षमता और कम ऊंचाई पर उड़ान इसे अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों, जैसे कि S-400, के खिलाफ भी प्रभावशाली बनाती है।
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के कुछ देशों, जो Su-30 विमान संचालित करते हैं, ने भी इसके एयर-लॉन्च संस्करण में रुचि दिखाई है।
भारत सरकार ने 2025 तक 5 बिलियन डॉलर के रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है, जिसमें ब्रह्मोस की प्रमुख भूमिका होगी। हाल ही में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्थापित हुई 200 एकड़ की ब्रह्मोस निर्माण सुविधा इस लक्ष्य को साकार करने में निर्णायक साबित होगी।