सोशल मीडिया पर वायरल हो रही एक विवादास्पद तस्वीर ने सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। इस तस्वीर में एक व्यक्ति के चेहरे को दो हिस्सों में विभाजित किया गया है — एक ओर डॉ. भीमराव आंबेडकर और दूसरी ओर समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव का चेहरा दिखाई दे रहा है। इस तस्वीर पर आपत्ति जताते हुए राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (SC-ST आयोग) ने उत्तर प्रदेश पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं।
आंबेडकर की छवि के साथ खिलवाड़
इस मामले ने तूल तब पकड़ा जब सोशल मीडिया पर यह तस्वीर तेजी से प्रसारित होने लगी। कई दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस चित्र को “आंबेडकर जी की छवि के अपमान” के रूप में देखा और कड़ी कार्रवाई की मांग की। आयोग के अध्यक्ष विजय सांपला ने इस मामले में तत्काल संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को नोटिस जारी कर दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए।
मीडिया से बात करते हुए सांपला ने कहा, “यह सिर्फ एक छवि नहीं, बल्कि दलित समाज की गरिमा और भावनाओं पर सीधा प्रहार है। डॉ. आंबेडकर हमारे संविधान निर्माता हैं और उनकी छवि से छेड़छाड़ किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं की जा सकती। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि इस कृत्य के लिए जिम्मेदार व्यक्तियों को सजा मिले।”
कानूनी दृष्टिकोण से गंभीर अपराध
आयोग का कहना है कि यह तस्वीर जानबूझकर समाज में वैमनस्य फैलाने के उद्देश्य से तैयार की गई है। यह कृत्य अनुसूचित जातियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है और इसे SC-ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय अपराध माना गया है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
इस मामले को लेकर राजनीति भी गर्मा गई है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने समाजवादी पार्टी पर हमला करते हुए आरोप लगाया है कि वह दलित प्रतीकों का राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी की ओर से अभी तक कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, हालांकि पार्टी के कुछ नेताओं ने स्पष्ट किया है कि यह तस्वीर किसी समर्थक द्वारा अनाधिकारिक रूप से बनाई गई है और पार्टी का इससे कोई संबंध नहीं है।
जांच और कार्रवाई जारी
लखनऊ पुलिस ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू कर दी है। साइबर सेल को आदेश दिए गए हैं कि वह इस तस्वीर के मूल स्रोत की पहचान करे और दोषियों की तलाश कर उचित कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित करे। अधिकारियों का कहना है कि अपराधियों को किसी कीमत पर छोड़ा नहीं जाएगा।
सवाल खड़ा करती घटना
यह विवाद एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या राजनीतिक लाभ के लिए समाज के महापुरुषों की छवियों के साथ छेड़छाड़ करना उचित है? आयोग की तीव्र प्रतिक्रिया यह संकेत देती है कि अब ऐसे मामलों को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाए जाएंगे।