खून और पानी एकसाथ नहीं बहेगा: पाकिस्तान पर भारत का सबसे बड़ा वार – सिंधु जल संधि पर रोक

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दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) की एक आपात बैठक में पांच महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, जिनमें सबसे बड़ा फैसला 1960 की सिंधु जल संधि को तत्काल प्रभाव से रोकने का रहा। जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन बंद नहीं करता, तब तक यह संधि अमल में नहीं लाई जाएगी। यह निर्णय पाकिस्तान के खिलाफ अब तक की सबसे कठोर कार्रवाई मानी जा रही है।

सिंधु जल संधि: क्या है यह समझौता?

सिंधु जल संधि पर भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को कराची में हस्ताक्षर हुए थे। इस संधि का उद्देश्य सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के उपयोग को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करना था। यह संधि विश्व बैंक की मध्यस्थता में बनी थी, और इसके लिए भारत तथा पाकिस्तान के बीच लगभग 9 वर्षों तक बातचीत चली। भारत की ओर से तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे।

भारत क्यों चाहता है संधि में बदलाव?

भारत ने जनवरी 2023 में और पुनः सितंबर 2024 में पाकिस्तान को सिंधु जल संधि में संशोधन हेतु नोटिस भेजे। भारत का कहना है कि यह 64 साल पुरानी संधि वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप नहीं है और इसे फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए। अनुच्छेद XII(3) के तहत दोनों देश आपसी सहमति से संधि में परिवर्तन कर सकते हैं, और भारत ने इसी प्रावधान का इस्तेमाल किया है।

जल-विद्युत परियोजनाओं पर भारत की पहल

भारत ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में दो प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाओं – किशनगंगा (330 मेगावाट) और रातले (850 मेगावाट) – के निर्माण में तेजी लाई है। ये परियोजनाएं पूरी तरह पर्यावरण-संगत हैं और नदी के प्राकृतिक प्रवाह को प्रभावित नहीं करतीं। हालांकि, पाकिस्तान इन परियोजनाओं को संधि का उल्लंघन बताते हुए विरोध कर रहा है।

शाहपुर कंडी बांध परियोजना: जल संरक्षण की दिशा में एक प्रयास

रावी नदी का जल पाकिस्तान में व्यर्थ बह जाने से रोकने के लिए भारत सरकार ने शाहपुर कंडी बांध परियोजना की योजना बनाई। यह परियोजना रणजीत सागर बांध के आठ किलोमीटर ऊपर बनाई जा रही है। इसका उद्देश्य सिंचाई और जल संरक्षण को बढ़ावा देना है।

पाकिस्तान में संकट की आहट

सिंधु जल संधि पर रोक लगाने का सीधा असर पाकिस्तान पर पड़ेगा। उसकी 80% कृषि भूमि सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर है। जल आपूर्ति ठप होने पर न केवल अन्न संकट उत्पन्न होगा, बल्कि ऊर्जा संकट भी पैदा होगा, क्योंकि पाकिस्तान के कई प्रमुख जल-विद्युत परियोजनाएं जैसे तरबेला और मंगला इसी जल पर निर्भर करती हैं। कराची, लाहौर और मुल्तान जैसे शहरों की जल आपूर्ति भी इस प्रणाली पर टिकी हुई है।

भारत का यह फैसला न केवल आतंकवाद के खिलाफ एक सख्त संदेश है, बल्कि जल संप्रभुता के संदर्भ में भी एक निर्णायक कदम है। यह अब समय की मांग है कि भारत अपनी प्राकृतिक संपदाओं के उपयोग पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करे, विशेषकर जब देश की सुरक्षा और हितों पर खतरा मंडरा रहा हो।