पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर हाल में हुई हिंसा ने राज्य की कानून-व्यवस्था, सामाजिक समरसता और राजनीतिक समीकरणों को हिला कर रख दिया है। वर्षों बाद पुलिस द्वारा फायरिंग की घटना, हिंदू समुदाय पर हमले के आरोप और AFSPA की मांग जैसे घटनाक्रम ने पूरे देश का ध्यान इस ओर खींचा है। सवाल यह है कि क्या यह हिंसा कानून के विरोध में उपजी प्रतिक्रिया थी या फिर एक सुनियोजित राजनीतिक चिंगारी?
वक्फ अधिनियम में संशोधन और असंतोष की आग
वक्फ अधिनियम में किए गए हालिया संशोधनों ने मुस्लिम बहुल इलाकों में भारी असंतोष पैदा किया। समुदाय का आरोप है कि ये बदलाव उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर सीधा हमला हैं। इसी असंतोष ने शुक्रवार को हिंसक रूप ले लिया। मुर्शिदाबाद, मालदा, और अन्य जिलों में उग्र प्रदर्शन हुए, जिसमें सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, पुलिस वाहनों में आग लगा दी गई और सुरक्षाबलों पर हमला किया गया।
सबसे दिल दहला देने वाली घटना शमशेरगंज के जाफराबाद इलाके में घटी, जहां हरगोबिंदो दास और उनके बेटे चंदन दास की निर्मम हत्या कर दी गई। पुलिस का मानना है कि यह एक सुनियोजित हमला था, जो हिंसा के सामान्य ढांचे से कहीं अधिक खतरनाक संकेत देता है।
BJP की मांग: क्या पश्चिम बंगाल में लगेगा AFSPA?
इस पूरे घटनाक्रम के बाद भारतीय जनता पार्टी के सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो ने केंद्रीय गृह मंत्री को पत्र लिखते हुए सीमावर्ती जिलों में AFSPA लागू करने की मांग की। उनका कहना है कि इन क्षेत्रों में हिंदू समुदाय को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया जा रहा है और राज्य सरकार पूरी तरह निष्क्रिय है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि हिंदुओं की संपत्तियों को आग के हवाले किया गया, लेकिन राज्य प्रशासन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। यह मांग अपने आप में बेहद गंभीर है, क्योंकि AFSPA आम तौर पर केवल उन क्षेत्रों में लागू किया जाता है जहाँ आंतरिक सुरक्षा हालात अत्यंत विकट होते हैं।
15 वर्षों बाद पुलिस फायरिंग: क्यों टूटा धैर्य?
मुर्शिदाबाद की हिंसा के दौरान पुलिस ने भीड़ पर फायरिंग की—15 साल में ऐसा पहली बार हुआ। ADG जावेद शमीम ने स्वीकार किया कि हालात बेकाबू थे और लाठीचार्ज तथा आंसू गैस के बावजूद भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा सका। ऐसे में पुलिस को मजबूरन गोली चलानी पड़ी।
यह घटनाक्रम राज्य सरकार के लिए एक कठिन विकल्प था। 2011 और 2012 में जब पुलिस ने गोली चलाई थी, तब अधिकारियों को नतीजे भुगतने पड़े थे, लेकिन इस बार राज्य सरकार पुलिस के साथ खड़ी नजर आ रही है। यह एक नीति-गत बदलाव को दर्शाता है।
स्थिति नियंत्रण में, लेकिन तनाव बरकरार
पुलिस ने दावा किया है कि हालात अब नियंत्रण में हैं। संवेदनशील इलाकों में गश्त बढ़ा दी गई है, अब तक 150 से अधिक गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और निषेधाज्ञा लागू है। अफवाहों को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाएं भी बंद कर दी गई हैं। हालांकि, दोनों समुदायों के बीच अविश्वास और डर का माहौल अभी भी बना हुआ है।
राजनीतिक विमर्श और ‘कश्मीरी पलायन’ की गूंज
BJP सांसद द्वारा मुर्शिदाबाद की स्थिति की तुलना 1990 के कश्मीरी पंडितों के पलायन से करना गंभीर चिंता का विषय है। यह बताता है कि राजनीतिक चर्चा अब केवल प्रशासनिक समाधान तक सीमित नहीं रही, बल्कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की दिशा में तेजी से बढ़ रही है।