बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से निष्कासित किए गए आकाश आनंद ने पार्टी सुप्रीमो और अपनी बुआ मायावती से सार्वजनिक रूप से माफी मांगी थी। कुछ ही घंटे के भीतर मायावती ने उदारता का परिचय देते हुए उन्हें माफ कर दिया। इसकी जानकारी खुद बसपा प्रमुख ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर दी।
एक और मौका दिया जाएगा: मायावती
मायावती ने अपने ट्वीट में लिखा, “आकाश आनंद द्वारा एक्स पर आज अपने चार पोस्ट में सार्वजनिक तौर पर अपनी गलतियों को मानने, सीनियर लोगों को आदर देने व अपने ससुर की बातों में आगे नहीं आकर पार्टी और मूवमेंट के लिए जीवन समर्पित करने की बात कहने के मद्देनजर इन्हें एक और मौका देने का निर्णय लिया गया है।”
उत्तराधिकारी को लेकर दिया बड़ा बयान
मायावती ने साफ शब्दों में यह भी कहा कि फिलहाल उत्तराधिकारी बनाए जाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। उन्होंने कहा, “वैसे अभी मैं स्वस्थ हूं और जब तक पूरी तरह स्वस्थ रहूंगी, मान्यवर कांशीराम जी की तरह पार्टी और मूवमेंट के लिए समर्पित रहकर कार्य करती रहूंगी। ऐसे में मेरे उत्तराधिकारी बनाए जाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। मैं अपने निर्णय पर अटल हूं और रहूंगी।”
ससुराल पक्ष पर जताई नाराजगी
मायावती ने आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को लेकर भी कड़ा रुख दिखाया। उन्होंने लिखा कि अशोक सिद्धार्थ की पार्टी विरोधी गतिविधियां और गुटबाजी अक्षम्य हैं। उन्होंने आकाश का करियर बर्बाद करने की कोशिश की, इसलिए उन्हें माफ करने या पार्टी में वापस लेने का कोई सवाल नहीं है।
आकाश आनंद ने मांगी माफी, जताई निष्ठा
इससे पहले आकाश आनंद ने मायावती से माफी मांगते हुए पार्टी में दोबारा काम करने की इच्छा जताई थी। उन्होंने कहा, “मैं बहनजी को ही अपना एकमात्र राजनीतिक गुरु व आदर्श मानता हूं। अब से अपने नाते-रिश्तेदारों और ससुराल पक्ष को किसी भी निर्णय में हस्तक्षेप नहीं करने दूंगा।”
उन्होंने अपने पुराने ट्वीट्स पर भी खेद व्यक्त करते हुए कहा कि आगे से वे सिर्फ मायावती के दिशा-निर्देशों का पालन करेंगे और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का सम्मान करेंगे।
भविष्य में गलती न दोहराने का वादा
आकाश ने अपने बयान में वादा किया कि वे भविष्य में कोई ऐसी गलती नहीं करेंगे जिससे पार्टी या मायावती के सम्मान को ठेस पहुंचे। उन्होंने कहा, “मैं बहनजी से अपील करता हूं कि वे मेरी सभी गलतियों को माफ करें और मुझे एक बार फिर से पार्टी के लिए काम करने का मौका दें।”
इस घटनाक्रम ने बसपा की आंतरिक राजनीति में एक नया मोड़ ला दिया है, जहां एक ओर परिवारिक संबंधों की गरिमा बनी रही, वहीं अनुशासन और पार्टी की विचारधारा को प्राथमिकता दी गई।