बिहार में वर्ष के अंत में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचलें तेज हो गई हैं। जहां एक ओर सत्ताधारी बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी, वहीं दूसरी ओर विपक्षी महागठबंधन भी अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुट गया है। इसी क्रम में महागठबंधन ने आगामी 17 अप्रैल को पटना में एक महत्वपूर्ण बैठक बुलाने का फैसला किया है।
यह बैठक कई मायनों में खास मानी जा रही है। सबसे अहम मुद्दा महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर है। महागठबंधन के प्रमुख घटक दलों—राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस—के बीच इस मुद्दे पर लंबे समय से मतभेद चल रहे हैं। आरजेडी ने स्पष्ट रूप से तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है, जबकि कांग्रेस का रुख अब तक अनिर्णीत रहा है। कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु कई बार यह कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री का चेहरा चुनाव परिणाम आने के बाद तय किया जाएगा।
17 अप्रैल को होने वाली बैठक में पहली बार तेजस्वी यादव और कृष्णा अल्लावरु आमने-सामने होंगे। इस बैठक के दौरान न केवल चुनावी रणनीति पर चर्चा होगी, बल्कि यह भी तय होगा कि क्या कांग्रेस तेजस्वी यादव को महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का चेहरा स्वीकार करेगी या नहीं।
बैठक में गठबंधन के अन्य दलों की भी भागीदारी रहेगी, और यह तय किया जाएगा कि महागठबंधन आगामी चुनाव में एकजुट होकर उतरता है या आंतरिक मतभेदों की वजह से उसकी मजबूती पर सवाल उठते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें इस बैठक पर टिकी हुई हैं, क्योंकि इसका सीधा असर बिहार की सियासी दिशा और विपक्ष की एकजुटता पर पड़ेगा। महागठबंधन के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती है एक साझा नेतृत्व के साथ मतदाताओं के सामने एक सशक्त विकल्प पेश करना।
17 अप्रैल की बैठक महज एक राजनीतिक चर्चा नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति की दिशा तय करने वाली एक निर्णायक घड़ी होगी।