नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप या रेप के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता।
सुप्रीम कोर्ट की कड़ी प्रतिक्रिया
जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हाईकोर्ट की टिप्पणियां पूरी तरह असंवेदनशील और अमानवीय हैं। कोर्ट ने केंद्र, उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस बी.आर. गवई ने कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि फैसला सुनाने वाले जज में संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी। यह बहुत गंभीर मामला है और इसमें दिखाई गई असंवेदनशीलता न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाती है।”
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने कहा, “कुछ फैसलों को रोकने के पीछे उचित कारण होते हैं और यह मामला भी उन्हीं में से एक है।”
इलाहाबाद हाईकोर्ट का विवादित फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने फैसले में कहा था कि किसी लड़की के निजी अंगों को पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना रेप या रेप के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। इस आधार पर उन्होंने दो आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं और तीन अन्य आरोपियों की पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली।
बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला भी सुप्रीम कोर्ट ने पलटा था
इससे पहले, 19 नवंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के एक विवादित फैसले को भी पलट दिया था। हाईकोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी 2021 में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि यदि पीड़िता के निजी अंगों को स्किन-टू-स्किन संपर्क के बिना छुआ गया है तो इसे पॉक्सो एक्ट के तहत अपराध नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “यौन हमले में महत्वपूर्ण बात इरादा होती है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क।”
न्यायपालिका की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट होता है कि न्यायपालिका को संवेदनशीलता और कानूनी मूल्यों के संतुलन को बनाए रखना चाहिए। महिलाओं और नाबालिगों के खिलाफ यौन अपराधों से जुड़े मामलों में न्यायपालिका की जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है ताकि समाज में न्याय की भावना मजबूत हो सके।