प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को लोकसभा में महाकुंभ के सफल समापन पर देशवासियों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि इस आयोजन को भव्य बनाने में समाज, सरकार और समर्पित कार्यकर्ताओं ने अमूल्य योगदान दिया। पीएम मोदी ने इसे “जागृत राष्ट्र की भावना” का प्रतीक बताते हुए कहा कि महाकुंभ हमारी संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग है। उन्होंने प्रयागराज के नागरिकों और श्रद्धालुओं के समर्थन के लिए आभार व्यक्त किया।
महाकुंभ पर लोकसभा में हंगामा
पीएम मोदी का भाषण खत्म होते ही विपक्षी दलों ने हंगामा शुरू कर दिया। विपक्षी सदस्य शोर मचाते हुए वेल तक आ गए और सवाल उठाने की मांग करने लगे। इस पर स्पीकर ओम बिरला ने नियम 372 का हवाला देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री या कोई भी मंत्री सदन में बिना किसी प्रश्न के वक्तव्य दे सकता है।
इस दौरान राहुल गांधी भी अपनी बात रखना चाहते थे, लेकिन उन्हें बोलने का मौका नहीं मिला। प्रियंका गांधी, जो अब लोकसभा सदस्य हैं, सदन से बाहर भाई राहुल के साथ चर्चा करती नजर आईं।
“हम पीएम का समर्थन करना चाहते थे, लेकिन…” – राहुल गांधी
बाहर आकर राहुल गांधी ने कहा कि वह पीएम मोदी की बातों का समर्थन करना चाहते थे, लेकिन उन्हें बोलने नहीं दिया गया। उन्होंने कहा:
“प्रधानमंत्री ने सही कहा कि महाकुंभ हमारी संस्कृति और परंपरा है, मैं इसका समर्थन करता हूं। लेकिन पीएम ने महाकुंभ की भगदड़ में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि तक नहीं दी। युवा जोश की बात करने वाले पीएम को यह भी बताना चाहिए कि सरकार ने रोजगार के लिए क्या किया? जो युवा महाकुंभ में गए, उन्हें रोजगार चाहिए।”
“विपक्ष को भी दो मिनट बोलने देते” – प्रियंका गांधी
प्रियंका गांधी ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी और कहा कि लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष एक सिक्के के दो पहलू होते हैं। उन्होंने कहा:
“अगर हम अपनी बात रखते तो इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी। विपक्ष की भी भावनाएं हैं और उन्हें भी अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए। हमें भी सिर्फ दो मिनट बोलने दिया जाता तो क्या हो जाता?”
न्यू इंडिया में लोकतंत्र पर सवाल?
इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर सत्ता और विपक्ष के बीच संवाद की कमी को उजागर किया। क्या लोकतंत्र में विपक्ष को अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिलना चाहिए? या फिर सत्ता पक्ष सिर्फ अपनी बातें ही सुनाना चाहता है? इस सवाल का जवाब जनता के हाथों में है।