तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने एक नया वीडियो संदेश जारी किया है, जिसमें उन्होंने भाषा विवाद और परिसीमन के मुद्दे पर सबका समर्थन मांगा है। उन्होंने केंद्र सरकार की तीन-भाषा नीति का कड़ा विरोध किया है।
स्टालिन ने तमिलनाडु की जनता को संबोधित करते हुए कहा कि वे अपने जन्मदिन (1 मार्च) पर एक बड़ी जनसभा करेंगे, जहां वे अपनी सरकार की उपलब्धियों के साथ-साथ डीएमके के मूल सिद्धांतों पर भी जोर देंगे।
परिसीमन और भाषा विवाद पर स्टालिन का बयान
“आज तमिलनाडु दो महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है—भाषा युद्ध, जो हमारी जीवन रेखा है, और परिसीमन के खिलाफ लड़ाई, जो हमारा अधिकार है। मैं आप सबसे आग्रह करता हूं कि इस संघर्ष का वास्तविक संदेश जनता तक पहुंचाएं।”
उन्होंने परिसीमन को तमिलनाडु के स्वाभिमान से जोड़ते हुए कहा,
“निर्वाचन क्षेत्र परिसीमन सीधे हमारे राज्य के स्वाभिमान, सामाजिक न्याय और लोगों की कल्याणकारी योजनाओं को प्रभावित करता है। यह जरूरी है कि हर तमिलनाडु निवासी इस मुद्दे पर जागरूक हो और अपनी आवाज बुलंद करे।”
केंद्र सरकार पर हमला
स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, “आज हम कर्नाटक, पंजाब, तेलंगाना और अन्य राज्यों से भी विरोध की आवाजें सुन रहे हैं। केंद्र सरकार दावा करती है कि वह अपनी इच्छाएं हम पर नहीं थोप रही, लेकिन उनके सभी कार्य इसके विपरीत संकेत देते हैं। उनकी तीन-भाषा नीति के कारण हमने पहले ही नुकसान उठाया है।”
परिसीमन पर स्टालिन की मांग
डीएमके प्रमुख ने अपनी मांग दोहराते हुए कहा,”केंद्र सरकार को केवल जनसंख्या के आधार पर संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण नहीं करना चाहिए। हम तमिलनाडु के कल्याण और भविष्य के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं करेंगे। तमिलनाडु विरोध करेगा! तमिलनाडु विजयी होगा!”
हिंदी थोपने का विरोध
तमिलनाडु सरकार का दावा है कि केंद्र, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत तीन-भाषा नीति उन पर थोपना चाहती है। गुरुवार को भी स्टालिन ने इस मुद्दे पर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया था।
उन्होंने हिंदी के प्रभाव को लेकर लिखा,
“अन्य राज्यों से आए मेरे प्रिय बहनों और भाइयों, क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है? भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खड़िया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख, मुंडारी और कई अन्य भाषाएं अब अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं।”
स्टालिन का कहना है कि हिंदी महज एक मुखौटा है, जबकि संस्कृत इसका छिपा हुआ चेहरा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि तमिलनाडु हिंदी थोपने का पुरजोर विरोध करता रहेगा।