दिल्ली विधानसभा में शराब नीति पर CAG रिपोर्ट पेश, हुआ बड़ा खुलासा

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दिल्ली विधानसभा में मंगलवार को शराब नीति से जुड़ी नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट पेश की गई। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने सदन में रिपोर्ट रखी, जिसके बाद स्पीकर विजेंद्र गुप्ता ने बताया कि पिछली सरकार ने इस रिपोर्ट को छिपाने की कोशिश की थी। हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई, जो संविधान और नियमों का उल्लंघन है।

CAG की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जिनमें बताया गया कि नई शराब नीति से दिल्ली सरकार को 2,026.91 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस नीति में लाइसेंस जारी करने, मूल्य निर्धारण, गुणवत्ता नियंत्रण, प्रवर्तन और इन्वेंट्री ट्रैकिंग में गंभीर अनियमितताएं पाई गईं।

CAG रिपोर्ट के 15 बड़े खुलासे:

1. दो हजार करोड़ रुपये से अधिक का घाटा

AAP सरकार की शराब नीति से 2,002.68 करोड़ रुपये का भारी राजस्व घाटा हुआ। इसमें गैर-अनुरूप क्षेत्रों में खुदरा दुकानें न खोलने से 941.53 करोड़, सरेंडर किए गए लाइसेंसों को फिर से टेंडर न करने से 890 करोड़, और क्षेत्रीय लाइसेंसधारियों को छूट देने से 144 करोड़ रुपये का नुकसान शामिल है।

2. लाइसेंसिंग में नियमों का उल्लंघन

शराब नीति में दिल्ली आबकारी नियम, 2010 के नियम 35 को लागू नहीं किया गया, जिससे कुछ थोक विक्रेताओं को गलत तरीके से लाइसेंस मिल गए। बिना वित्तीय जांच और आपराधिक पृष्ठभूमि की जांच के कई कंपनियों को लाइसेंस दे दिए गए।

3. थोक विक्रेताओं को मिला मनमाना मुनाफा

थोक विक्रेताओं का मार्जिन 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया गया, लेकिन जिन प्रयोगशालाओं की आड़ में यह फैसला लिया गया था, वे कभी स्थापित नहीं की गईं।

4. स्क्रीनिंग में अनदेखी, वित्तीय योग्यता को नजरअंदाज किया

100 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश की जरूरत थी, लेकिन वित्तीय योग्यता की कोई जांच नहीं की गई। इससे कमजोर कंपनियों को लाइसेंस मिले और प्रॉक्सी स्वामित्व की संभावना बढ़ी।

5. एक्सपर्ट्स की सिफारिशों की अनदेखी

शराब नीति तैयार करते समय AAP सरकार ने अपनी ही विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को दरकिनार कर दिया और कोई वैकल्पिक औचित्य दर्ज नहीं किया।

6. पारदर्शिता की कमी, एक ही व्यक्ति को 54 दुकानें देने की अनुमति

नई नीति में एक कारोबारी को 54 शराब की दुकानें संचालित करने की अनुमति दी गई, जबकि पहले यह सीमा केवल 2 थी। इससे एकाधिकार और कार्टेलाइजेशन का खतरा बढ़ गया।

7. कुछ चुनिंदा ब्रांड को फायदा पहुंचाया गया

नीति के तहत निर्माताओं को एक ही थोक विक्रेता के साथ गठजोड़ करने के लिए मजबूर किया गया। परिणामस्वरूप, 25 ब्रांडों ने दिल्ली में 70% शराब बिक्री पर कब्जा कर लिया, और केवल तीन कंपनियों ने 71% से अधिक आपूर्ति को नियंत्रित किया।

8. कैबिनेट और उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं ली गई

महत्वपूर्ण छूट और रियायतें बिना कैबिनेट की मंजूरी और उपराज्यपाल से परामर्श के दी गईं, जो कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन है।

9. अवैध रूप से खोली गई शराब की दुकानें

MCD और DDA की अनुमति के बिना कई इलाकों में शराब की दुकानें खोल दी गईं। चार अवैध दुकानें 2022 में MCD द्वारा सील कर दी गईं।

10. शराब की कीमतों में पारदर्शिता नहीं

दिल्ली आबकारी विभाग ने थोक लाइसेंसधारियों को महंगी शराब की कीमतें तय करने की छूट दी, जिससे मूल्य हेरफेर की संभावना बढ़ गई।

11. गुणवत्ता परीक्षण में गंभीर लापरवाही

शराब लाइसेंस तब भी जारी किए गए, जब गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट गायब थीं या भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के मानदंडों पर खरी नहीं उतरीं।

12. तस्करी रोकने में नाकामी

आबकारी खुफिया ब्यूरो (EIB) अवैध शराब तस्करी रोकने में विफल रहा। FIR विश्लेषण से कुछ क्षेत्रों में बार-बार तस्करी के पैटर्न का पता चला, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

13. अवैध शराब कारोबार को बढ़ावा

नई नीति के कारण अवैध देशी शराब का व्यापार तेजी से बढ़ा, क्योंकि रिकॉर्ड प्रणाली कमजोर थी और आपूर्ति सीमित कर दी गई थी।

14. नियम तोड़ने वालों पर कार्रवाई नहीं हुई

आबकारी विभाग शराब नीति का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने में असफल रहा। कई बार छापे मारे गए, लेकिन सबूत ठीक से इकट्ठा नहीं किए गए, जिससे मामले कमजोर पड़ गए।

15. सुरक्षा लेबल प्रणाली को छोड़ दिया गया

आधुनिक डेटा एनालिटिक्स और AI आधारित ट्रैकिंग प्रणाली लागू करने के बजाय पुरानी और अप्रभावी निगरानी प्रणाली पर भरोसा किया गया, जिससे धोखाधड़ी की संभावनाएं बढ़ गईं।

निष्कर्ष:

CAG की इस रिपोर्ट ने दिल्ली की शराब नीति में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया है। इस रिपोर्ट के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है

और अब देखना होगा कि दिल्ली सरकार और विपक्ष इस पर क्या रुख अपनाते हैं।