केंद्र सरकार ‘शत्रु संपत्ति अधिनियम’ में बदलाव लाने की तैयारी कर रही है। ये बदलाव सरकार को शत्रु संपत्तियों पर और भी ज्यादा अधिकार दे देंगे। मतलब, सरकार सीधे इन संपत्तियों की मालिक बन सकेगी और उन्हें ‘सार्वजनिक हित’ में इस्तेमाल कर सकेगी। 1968 के इस कानून के मुताबिक, जो संपत्तियां दुश्मन देशों की मानी जाती हैं, वो ‘कस्टोडियन ऑफ एनिमी प्रॉपर्टी’ के पास रहती हैं। ना तो उन्हें कोई वारिस मिल सकता है, ना ही बेचा जा सकता है। 2017 में इसमें कुछ बदलाव जरूर हुए, जिससे ‘शत्रु नागरिक’ और ‘शत्रु कंपनी’ की परिभाषा थोड़ी और साफ हुई। लेकिन अब सरकार चाहती है कि इन संपत्तियों पर उसका सीधा नियंत्रण हो। सूत्रों की मानें तो लखनऊ नगर निगम से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये बदलाव जरूरी हो गए हैं।
सार्वजनिक हित में काम आएंगी शत्रु संपत्तियां
सरकार का कहना है कि वो इन संपत्तियों को ‘सार्वजनिक हित’ या किसी और काम के लिए ले सकती है। और ‘कस्टोडियन’ को ये संपत्तियां बिना किसी रोक-टोक के सरकार को ट्रांसफर करनी होंगी। ये बदलाव अधिनियम की धारा 5 के तहत प्रस्तावित हैं। खबर है कि इस हफ्ते कैबिनेट में इस पर चर्चा हो सकती है। और बजट सत्र में ये बिल संसद में भी पेश किया जा सकता है।
छह सालों में ₹3,494.93 करोड़ की शत्रु संपत्तियां बिकीं
पिछले छह सालों में केंद्र सरकार ने 3,494.93 करोड़ रुपये की शत्रु संपत्तियों को बेचकर पैसा बनाया है। 1965 और 1971 में पाकिस्तान और 1962 में चीन के साथ हुई जंग के बाद भारत सरकार ने उन लोगों की संपत्तियों और कारोबार पर कब्जा कर लिया था, जिन्होंने पाकिस्तान या चीन की नागरिकता ले ली थी। ‘डिफेंस ऑफ इंडिया रूल्स’ के तहत जो ‘डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट, 1962’ के अंतर्गत बनाए गए थे, इन संपत्तियों को ‘कस्टोडियन’ के हवाले कर दिया गया। ‘कस्टोडियन’ का काम इन संपत्तियों को सरकार की तरफ से मैनेज करना है।
बिक्री की निगरानी करता है मंत्री समूह
जनवरी 2018 में सरकार ने लोकसभा को बताया था कि पाकिस्तानी नागरिकों की 9,280 और चीनी नागरिकों की 126 शत्रु संपत्तियां हैं। उसी साल, कैबिनेट ने 3,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के शत्रु शेयर बेचने की प्रक्रिया को मंजूरी दी थी। 20,232 शेयरधारकों की 996 कंपनियों के कुल 65,075,877 शेयर चिन्हित किए गए थे। 2020 में केंद्र सरकार ने अमित शाह की अध्यक्षता में एक ‘ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स’ का गठन किया था। इसका काम करीब 1 लाख करोड़ रुपये कीमत की 9,400 से ज्यादा शत्रु संपत्तियों की बिक्री की देखरेख करना है।